मेरी तस्वीरमे रँग किसी ओरका तो नही,
मेरे हालात की आंधी में बिखरना कभी नही।
एक तरफ है मेरे विचार, वही आपके करामाती सँग,
मन: संकल्प सिद्धि सोपान ओर ध्यानाकर्षित एक रँग।
शब्द जो बनाये मुखड़ा ओर अंतरा अच्छा अच्छा,
वहाँ मेरे अल्फाज़ बनाये शब्द सही सही।
आपके शब्द से बनते कई वाक्य विधान विचार विस्तार,
मेरे अल्फाज़ से बनते शब्द रंग विचार विस्तार।
लाल, नीला, पिला मुलरंग है शरीर श्री प्रकृति से जुड़े हुए,
मेरा तो न जाने कैसा रंग है विचार बादल का किसीसे जुड़े हुए।
कहते है प्राण प्रकृति मृत्यु पर्यन्त साथ होती है,
मेरा "र" अंग गोरा हो या काला पर परम् धीषणी से जुड़कर वापस आया है।
तभी तो गोर वर्णीय काया को श्याम श्रृंग की लालसा रही।
जिगर महेता / जैगीष्य
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