Thursday, 28 July 2022

DevDatt Patnaik's book Shikhandee's Index

भाग - 1

असामान्य लैंगिक विशेषताओं की पहचान 

असामान्य यौनप्रवृत्ति की खोज या आविष्कार

भाग - 2

1. शिखण्डी जो अपनी पत्नी को सन्तुष्ट करने के लिए पुरुष बन गया


2. महादेव - जो अपने उपासक के शिशु को जन्म देने के लिए स्त्री बने


3. चूडाला जो अपने पति को ज्ञान देने के लिए पुरुष बनी


4. विष्णु जो देवों, दानवों और एक तपस्वी को मोहित करने के लिए स्त्री बने


5. काली जो गोपियों को मोहित करने के लिए पुरुष बनी


6. गोपेश्वर - जो नृत्य करने के लिए नारी बने


7. सामवान - जो अपने एक पुरुष मित्र की पत्नी बन गया


8. रत्नावली - जो अपनी सहेली की साथी बनी


9. मान्धाता जिसे एक पुरुष ने जन्म दिया 10. भंगाश्वन- जो पुरुष भी था और माँ भी


11. उर्वशी जिसे किसी नारी ने जन्म नहीं दिया


12. भगीरथ - जिसे दो नारियों ने जन्म दिया


13.  स्कन्द - जिनकी सभी माताएँ नारी नहीं थीं


14. इरावान - जिसकी पत्नी पूरी तरह से एक पुरुष थी



15. बहुचर - जिसका पति एक अधूरा पुरुष था


16. अर्जुन - संयम का प्रदर्शन करने के लिए जिसका अस्थाई तौर पर बधियाकरण किया गया


17.  इन्द्र - जिसे संयम न दिखा पाने के कारण अस्थाई रूप से बधिया कर दिया गया


18. अरुण - जो सूर्य के रुकने पर एक नारी बन गया


19. इला - जो चाँद के क्षीण हो जाने पर पुरुष बन गई


20. भीम जिसने दण्ड देने के लिए स्त्रियों के - वस्त्र धारण किए


21. विजय - जिसने विजयी होने के लिए स्त्रियों के वस्त्र पहने


22. कृष्ण- जिन्होंने प्रेमवश नारी परिधान पहना


23. साम्ब - जिसने खिलवाड़ में औरतों के कपड़े पहने


24. रानी एल्ली जो अपने बिस्तर पर किसी पुरुष की मौजूदगी नहीं चाहती थी


25. कोप्यरुमचोलन राजा जो अपनी कब्र के साथ वाली कब्र में एक पुरुष चाहता था


26. नारद - जो भूल गए कि वह पुरुष थे


27. प्रमिला जिसे किसी पुरुष का ज्ञान नहीं था


28. ऋष्यश्रृंग - जिन्हें किसी नारी का ज्ञान नहीं था


29. शिव जिन्होंने अपनी पुरुष देह में नारी की देह को शामिल किया


30. राम - जिन्होंने अपने शासन में सबको शामिल किया

Saamvaan or Saambwaan

Samavan, who became the wife of his male friend

From the Skanda Purana

Sumedhas and Samavan were two poor brahmins, so poor that no one was willing to give either of them a wife. They learned of one queen, Simantini, who served lunch and offered rich gifts to one brahmin couple every Monday, after worshipping them as the divine couple, Shiva and Shakti. The two youths were in a fix - they needed the gifts to get married but they could not get the gifts from the queen unless they went to her with a bride. So they decided to obtain the gifts by deceit. Samavan disguised himself as a woman and with Sumedhas acting as the ‘husband’, they introduced themselves to the queen as a ‘couple’. Simantini guessed these were two men pretending to be a couple. Still, imagining them as the divine couple Shiva and Shakti, she worshipped them. Such was the power of the queen’s piety and her imagination that Samavan lost his manliness and became a woman named Samavati. Sumedhas was at first surprised but later agreed to marry his former friend. With the gifts they received, the two set up house and lived happily. Samavan’s father moaned the loss of a son but was consoled when his wife was blessed with an equally intelligent male child.

• Skanda Purana was put down in writing between the eighth and twelfth century CE. • In the sixteenth century, a Tamil poet named Varatunka Rama Pantiyar retold the story of Samavan’s sexual transformation found in Skanda Purana. • The aim of the story is to speak of the power of fasting on Monday for expressing devotion for Shiva. • The theme of a man turning into a woman, or a woman turning into a man, by the grace of God is common in religious literature. For example, in one folktale, a girl escapes those who seek to rape her by entering a temple where the deity transforms her into a man. • Unlike female-to-male and male-to-female gender transformations that evoke discomfort in modern times, in these stories sexual transformation is accepted rather comfortably by all the characters, and the author. • Does physical transformation of Samavan take away the fact that his memory is that of a man and that his husband was once his friend? Will the equation between them post transformation and post marriage be one of equals considering it is a queer one, or will it align to traditional patriarchal hierarchies? • The punishment for men having sex with men in Manu-smriti has less to do with sex and more to do with ritual pollution of brahmin men, and involves purification rituals such as taking a bath. • The colloquial word for passive effeminate homosexuals in India is kothi, which is very similar to the Thai word for lady-boys, kathoey. One can speculate that they may have common roots because of sea-links between India and the South East in medieval times. The word for the active masculine homosexual is panthi, which may be traced to the Sanskrit panda and the Pali pandaka. There are many regional variations of these words.

Story reference taken from devdutt Patnaik's book shikhandee...

Wednesday, 27 July 2022

मृत्यंजय अश्वमेघीय मंत्र

मृत्युंजय अश्वमेघिय मंत्र 
About the Mantras

• The most powerful Mantras from Aswamedha Chant appears in Taittireeya Brahmanam, Ashtakam-3, Prashnam-9, Anuvakam-14, 15 and 16.

•These Mantras are very difficult to recite because, the swaras are jumping often and not like in Samhita portion.

• We are providing the Mantras in Sanskrit along with Audio.

• Probably, this is the only clear Audio/Video available in the Internet/YouTube on the Mrityunjaya Mantra from Aswamedha Chant along with Lyrics. Please check.

Purpose of these Mantras

It is believed that, the recitation and listening of these Mantras enhances the longevity of life and bestows good health.

•This is one of the best Aasirwada Mantras recited at the end of Mrityunjaya Homa, or any other auspicious occasions to bless the family members.

•You can consult your Guru, for its usage and meaning of these Mantras.

अप वा एतस्माच्छ्री राष्ट्रङ् क्रमति । 
यो॑ ऽश्वमेधेन यज॑ते । 
ब्राह्मणौ वी॒णागाथिनौ गायत : । 
श्रिया वा ए॒तद्रूपम् । यद्वीणा॑' । श्रय॑मे॒वास्मि॑िन्त॒द्व॑त्त॒ : । 
यदा खलु॒ वै पुरु॑ष : श्रिय॑मश्नुते । 
वर्णाऽस्मै वाद्यते । । तदा॑हु: । 
यदुभौ ब्राह्मणौ गायैताम् ।।१।।

प्रभ्रशु॑काऽस्माच्छ्री : स्या॑त् । 
न वै ब्रह्मणे श्री र॑म॒त इति॑ । 
ब्राह्मणॊ'ऽन्यो गायै'त् । राजन्यो॑'ऽन्य : । 
ब्रह्म वै ब्रह्मण: । क्षत् रा॑ज॒न्य॑ : ।
तथा॑ हास्य॒ ब्रह्म॑णा च क्षत्त्रेण॑ चोभयत : श्री : परि॑गृहीता भवति । तदा॑हु॒ : ।
यदु॒भौ दिवा गायै॒ताम् । 
अपा॑स्माद्रष्टृङ् क्रमेत्।।२।। 

न वै ब्रह्मणे राष्ट्र र॑म॒त इति॑ । 
यदा खलु॒ वै राजा॑ का॒मय॑ते॒ । 
अथ॑ ब्राह्मण ज॑नाति । 
दिव' ब्राह्मणो गा॑येत् । 
नक्त ँ राजन्य॑ : । 
ब्रह्म॑णो वैरूपमहं : । क्षत्त्रस्य रात्रं : ।
तथा॑ हास्य॒ ब्रह्म॑णा च क्षत्त्रेण॑ चोभयतौ राष्ट्रं परि॑गृहीतं भवति । 
इत्य॑ददा इत्य॑य॒जथा इत्य॑प॒च इति॑ ब्राह्मणो गायै'त् ।  इष्टापूर्तं वै ब्राह्मणस्य ।।३।। 

इष्टापूर्ते नैवैन स समर्धयति । 
इत्य॑जना इत्य॑यु॒ध्यथा इत्यमु॒ स॑ङ्ग्रामम॑ह॒न्नति॑ रा॒ज॒न्य॑ : ।
युद्धं वै रा॑ज॒न्य॑स्य॒ । 
युद्धेनैवैन स सम॑र्धयति । 
अक्लृप्ता वा ए॒तस्य॒र्तव इत्या॑ह॒ । 
यो॑ ऽश्वमेधेन यज॑त॒ इति॑ । 
तस्र'ऽन्यो गाय॑ति तिस्र'ऽन्य : ।
षट्थ्संप॑द्यन्ते । षड्वा ऋ॒तव॑ ।
ऋतूनेवास्मै कल्पयत : । 
ताभ्या ँ स॒स्थाया॑म् ।
अनोयुक्ते च॑ शते च॑ ददाति । 
शतायु : पुरुष : शतेन्द्र॑य: । 
आयु॑ष्येवेन्द्रि॒ये प्रति॑ति॒ष्ठति ।।४।।

सर्वे॑षु वा एषु लोकेषु॑ मृ॒त्यवोऽन्वय॑त्त : । 
तेभ्यो यदाहु॑तीर्न जु॑हुयात् । 
लोके लॊक एनं मृत्युर्वन्देत् । 
मृ॒त्यवे॒ स्वाहा॑ मृ॒त्यवे स्वाहेत्य॑भि पूर्वमाहु॑ती र्जुहोति। 
लोकाल्लो॒कादेव मृत्यु॒मव॑य॒जते ।
नैनं॑ लो॒के लॊके मृत्युर्विन्दति । 
यदमुष्मै स्वाहाऽमुष्मै स्वाहेति जुर्हृथ्सञ्चीत । बहुं मृत्यु॒ममित्र॑ङ् कुर्वीत । 
मृ॒त्यवे स्वाहेत्येस्मा ए॒वैका॑' ञ्जुहुयात् । 
एको वा अमुष्मै॑ ल्लोके मृत्यु : ।।१।।

अशनया मृत्युरेव । 
तमेवामुष्मै॑ लो॒केऽव॑य॒जते । 
भ्रूणहत्यायै स्वाहेत्य॑वभृथ आहु॑ति जुहोति । भ्रूणहत्या॒मे॒वाव॑य॒जते । तदा॑ह॒ : । 
यद्व॑ण॒हत्या ऽपा॒त्र्या॒ऽथॆ । 
कस्मा॑'द्य॒ज्ञेऽपि क्रियत इति॑ । 
अमृ॑त्युर्वा अन्यो भ्रूणहत्याया इत्या॑हु: ।
भ्रूणहत्या वाव मृ॒त्युरिति॑ । 
यद्ब्रूणहत्यायै स्वाहेत्य॑वभृथ आहु॑गि जु॒होति॑ ॥२॥ 

मृत्यु॒मे॒वाहु॑त्या तर्पयित्वा प॑रि॒पाण॑ङ् कृ॒त्वा । भ्रूण॒घ्ने भैषजङ् क॑रोति । 
ए॒ता ँ ह वै मुण्डिभ औदन्यव । 
भ्रूणहत्यायै प्राय॑श्चित्तं विदाञ्च॑ ।
यो हास्यापि॑ प्र॒जाया॑म् ब्राह्मण॒ हन्ति॑ । 
सर्व॑स्मै तस्मै॑ भेष॒जङ् क॑रोति । 
जुम्बकाय॒ स्वाहेत्य॑व॒भृथ उ॑त्त॒मामाहु॑ति ञ्जुहोति। 
वरु॑णो वै जु॑म्बक : । 
अन्त॒त ए॒व वरु॑ण॒मव॑य॒ते ।
खलतेवि॑क्लिधस्य॑ शुक्लस्य॑ पिङ्गाक्षस्य॑ मू॒र्धञ्जुहोति । 
एतद्वै वरुणस्य रूपम् । 
रूपेणैव वरु॑ण॒मव॑य॒जते ॥३॥

वारुणो वा अ॒श्व॑ : । 
त न्दे॒वत॑या॒ व्य॑र्धयति ।
यत्प्रा॑जापत्यङ् करोति॑ । 
नमो राज्ञे नमो वरु॑णा॒ये॒त्या॑ह । 
वरु॒णो वा अश्व: ।
स्वयैवैनं॑न्दे॒वत॑या सम॑र्धयति ।
नमोऽश्वा॑य॒ नमः॑ प्र॒जाप॑तय इत्या॑ह । 
प्राजापत्यो वा अ॒श्व॑ : । 
स्वयैवैनं॑ न्दे॒वत॑या॒ सम॑र्धयति ।
नमोऽधि॑प॒तय॒ इत्या॑ह ॥१॥

धर्मो वा अधि॑पति : । धर्म॑मे॒वा व॑न्धे ।
अधि॑पति रस्यधि॑पति॑ मा कु॒र्वधि॑पतिरहं प्र॒जाना॑म् भूयासमित्या॑ह । 
अधि॑पतिमेवैन ँ' समानाना'ङ करोति । 
मा न्धे॑हि मयि॑ धेहीत्या॑ह । 
आ॒शिष॑मे॒वैतास्ते ।
उपा कृ॑ताय॒ स्वाहेत्यु॒पाकृ॑ते॒ जुहोति । 
आल॑ब्धाय स्वाहेति नियु॑क्ते जुहोति । 
हुताय स्वाहेति॑ ह॒ते जु॑होत । 
ए॒ष लो॒काना॑म॒भिजि॑त्यै ।।२।। 

प्र वा एष एभ्यो लोकेभ्य॑श्च्यवते । 
यो॑'ऽश्वमेधेन यज॑ते॒ । 
आ॒ग्ने॒यमे॑न्द्रा॒ग्न'श्विनम् ।
तान्प॒शूनाल॑भते॒ प्रति॑ष्ठित्यै । 
यदा॑ग्ने॒ भव॑ति । अग्नि : सर्वा॑ दे॒वता॑' : । 
दे॒वता॑ ए॒वाव॑रुन्धे । ब्रह्म वा अग्नि : । 
क्षत्र॒मिन्द्र॑ । यदै 'न्द्रानो भव॑ति :॥३॥

ब्रह्मक्षत्ते॒ ए॒वा व॑रुन्धे । 
यदा॑श्विनो॒ भव॑ति ।
आ॒शिषामव॑रुद्ध्यै । 
त्रयो॑ भवन्ति । 
त्रय॑ इ॒मे लोका : । 
एष्वे॑व लोकेषु प्रति॑तिष्ठति ।
अ॒ग्नयेऽ৺होमुचे ऽष्टाक॑पाल इति दश॑हविषमिष्ट न्निर्व॑पति । 
दर्शा'क्षरा विराट् । अन्नं विराट् ।
विराजैवान्नाद्य मव॑रुन्धे । 
अ॒ग्नेर्म॑न्वे प्रथमस्य॒ प्रचे॑तस
इति॑ याज्यानुवाक्यां॑ भवन्ति॒ि सर्व॒त्वाय॑ ।।४।।

Reference from YouTube Ghanaapaathi K Suresh channel... By help of Google translate.. but it's a sanskrut.. so if mistake, please pardon me.. but true ways tried for good giving to people..

Jay Gurudev Dattatreya
Jay Hind 

Saturday, 23 July 2022

Monkey's ladies are having human face

While study the photo, question in my mind... HOW imagination made by the portrait makers in mind and Why ladies only with beautiful bodies with few odd faces???

In past when ramayan serial was released on Indian door darshana channel.. people asked to director.. Ramanand Sagar ji.. why monkey has make-up Mask and their ladies are actual human face???

Director given answer not in my memory but that's fun.. 

But after long time I read nath sampradaya book related matters and really surprised..

Nath sampradaya has unique answers for the same!!!!

Ofcourse fronger park is having unique structure, but central structure of humans are very much unique...

Jay Gurudev Dattatreya
Jay Hind 
Jigaram JAIGISHYA Jigar:


Wednesday, 20 July 2022

तीन प्रकारीय मृत्युंजय मंत्र जाप

प्रकार 1


महामृत्युंजय मंत्र - यज्ञ

इस मंत्र के जप में ध्यान परमावश्यक है। शिवपुराण में यह ध्यान इस प्रकार बतलाया गया है:

हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धृत्य तोयं शिरः सिंचन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वांके सकुम्भौ करौ । अक्षस्रङ्मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत् पीयूषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युंजयम् ॥

"जो अपने दो करकमलों में रखे हुए दो कलशों से जल निकालकर उनसे ऊपरवाले दो हाथों द्वारा अपने मस्तक को सींचते हैं। अन्य दो हाथों में दो घड़े लिए उन्हें अपने गोद में रखे हुए हैं तथा शेष दो हाथों में रुद्राक्ष एवं मृगमुद्रा धारण करते हैं, कमलासन पर बैठे हैं, सिर पर स्थित चन्द्रमा से निरंतर झरते हुए अमृत से जिनका सारा शरीर भीगा हुआ है तथा जो तीन नेत्र धारण करनेवाले हैं उन भगवान मृत्युंजय, जिनके साथ गिरिराजनंदिनी उमा भी विराजमान हैं, उनका मैं भजन (चिंतन) करता हूँ।' (सती खंड : ३८.२४)

इस प्रकार ध्यान करके रुद्राक्षमाला से महामृत्युंजय मंत्र का निश्चित संख्या में जप करना चाहिये।

मंत्रजप प्रारंभ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर निम्न श्लोक पढ़कर संकल्प करें

ॐ अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयमंत्रस्य वसिष्ठ ऋषिः । 
अनुष्टुप् छन्दः । 
श्री मृत्युञ्जयरुद्रो देवता। 
हौं बीजं। जूँ शक्तिः। 
सः कीलकम्। 
यजमान यूजमानस्य (श्रीमति जिगिशास्य) आयु-आरोग्य-यश-कीर्ति-पुष्टिवृद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

जय हेतु महामृत्युंजय मंत्र -

ॐ हौं जूं सः । 
ॐ भूर्भुवः स्वः । 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् । 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
ॐ । स्वः भुवः भूः 
ॐ सः जूँ हौं। .... ॐ 

मंत्रजप की पूर्वनिर्धारित संख्या पूर्ण होने पर उस संख्या की दशांश संख्या में महामृत्युंजय मंत्र के अंत में 'स्वाहा' शब्द जोड़कर आहुतियाँ देते हुए हवन करें।

अपना संकल्प अर्पण करने हेतु अंत में हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें
"अनेन कृतेन भगवान महारुद्रः प्रीयतां न मम।"




प्रकार 2

ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम ।
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनै:।।
ॐ हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महेसुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्। उर्व्वारूकमिवबंधनान्न मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्  
ॐ स्वः भुवः भूः 
ॐ सः जूं हौं .... ॐ




प्रकार 3

त्र्य॑म्बकं य्यजामहे सुगन्धिं पु॑ष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमि॑व बन्ध॑नान्मृ॒त्योर्मुक्षीय माऽमृता॑त् ।।१।।

ये ते॑ स॒हस्र॑म युतं पाशा मृ॒त्यो मर्त्याय हन्त॑वे । 
तान् - य॒ज्ञस्य॑ मायया सर्वा नव॑ यजामहे ।।२।।

मृ॒त्यवे॒ स्वाहा॑ मृ॒त्यवे स्वाहा॑  S(विभक्तरूप अंग संधि )॥३॥

तीन प्रकार के श्लोक के प्रावधान होने के बावजूद भी हाथों की परिभाषा, यज्ञ के स्थान के समय जो वही सत्कार्य होता है, वह निश्चित तौर पर अलग ही होता है। वह हाथ की परिभाषा में आहुति का हवी द्रव्य का होम कैसे करना है, किस चीज से करना हे, वह तो रूबरू आचार्य ही समझा सकते हैं। क्योंकि हर आदमी की जिजीविषा अलग होती हे।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद