Friday, 14 December 2018

Universal language

Knowledge is about sarvatrik language...

All animals and birds language are calling as sarvatrik language...

We can speak so many language on different levels, But animals and birds are not...

Nature has specific word language and that's written in our vedas and As per sanskrut it all has good meaning....

Wind noise.
ssssssssssssssssssssss

Water noise
Khal khal khal khal

Fire noise
Bhad Bhad bhad bhad

Earth noise
While walking or striking by an object ....

Sky noise
Which we calling as PALSAAR
NASA recorded few noise as brief description...

I would like to inform you that we have capital of our own body as property given by nature, but we are making races behind money.....

Here produced hot photo telling code like....
Yellow fire
Blue water
Green earth
Brown tree
Red main elements of body
Gray is about mixer of things happen in black and white....

Sometimes I laughing on other odd sentence but like to interest in growing India country's economy at worldwide

Jigar Mehta / Jaigishya

शरीरी कचरे की अगत्य

विचार और आचरण संदिग्ध परिस्थितियों में अलग न हो तो शक्तिमान असाधारण रूप से परिपक्वता हासिल कर सकते है।
मगर व्याप्त रूप से मगज के विचार सराहना कभी काबिले तारीफ हो सकता है लेकिन ज़िंदा रहना चाहिए, वही मौजूद जरूरत है।
कूछ भी करो, अपनी पूरी सांसे चालू रखो।
शारीरिक कचरा अपने आप मिलेगा।

Meaning of न्यास

हिंदी मे अर्थ

Meaning of न्यास in Hindi

न्यस्त कोई चीज कहीं जमा या बैठाकर रखना।
स्थापित करनाचीजें चुन या सजाकर यथा स्थान रखना।
किसी चीज के कहीं रखे जाने के फलस्वरूप उस स्थान पर बननेवाला चिह्न या निशान।
वह द्रव्य या धन जो किसी के पास धरोहर के रूप में रखा जाय।अमानतथातीधरोहरकोई चीज किसी को देना या सौंपना।
अर्पणभेंटअंकित या चित्रित करना।
सामने लाकर उपस्थित करना या रखना।छोड़नात्यागनापूजन, वंदन आदि में धार्मिक विधि के अनुसार भिन्न भिन्न देवताओं का ध्यान करते हुए इस प्रकार अपने शरीर के भिन्न भिन्न अंगों का स्पर्श करना कि मानों उन अंगों में देवता स्थापित किये जा रहे हों।
१॰ रोगी का रोग आदि शांत करने के लिए मंत्र पढ़ते हुए उक्त प्रकार से रोगी के भिन्न भिन्न अंगों पर हाथ रखना या उन्हें स्पर्श करना।
1चढ़ा हुआ स्वर उतारना या मंद करना।
1संन्यास।
आज कल किसी विशिष्ट कार्य के लिए अलग किया या निकाला हुआ वह धन या संपत्ति जो कुछ विश्वस्त व्यक्तियो��� को इस दृष्टि से सौंपी गई हो कि वे दाता की इच्छानुसार उसका उचित उपयोग और व्यवस्था करेंगे।

Saturday, 1 September 2018

Prayers for Muniji

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतम् गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

अल्लाहु अकबर-अल्लाहु अकबर..
अश्हदुअल्ला इलाह इल्ल्अल्लाह..
अश्हदुअन्न मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह..
 हय्या अ़लस्-सलात..
हय्या अ़लल-फ़लाह..
अस्सलातु ख़ैरूम्-मिनन्नौम..
अल्लाहु अकबर-अल्लाहु अकबर..!!

*ઈશ્વર આપણા આશ્રય તથા આપણું સામર્થ્ય છે, સંકટને સમયે તે હાજરાહજૂર મદદગાર છે.*
ગીતશાસ્‍ત્ર 46:1

Amen...... Amen.....

खुदावंन्द येशु मसीह के नाम मे आप को सुबहा का सलाम...

Tarun Sagar Muniji now no more with us...

He is wellknown for his KADVEY PRAVACHAN...


Maybe taken SANTHARO while illness...
Rest in peace and have a glorious path to his beautiful soul....

Monday, 30 July 2018

Shivatandavastotra by Ravana

श्रीशिवताण्डवस्तोत्रम् रावणरचितम् 
Shivatandavastotra by Ravana

श्रीशिवताण्डवस्तोत्रम् रावणरचितम् ॥
अथ रावणकृतशिवताण्डवस्तोत्रम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- -विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे । कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे । मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः । भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा- -निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् । सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥ ६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके । धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक- -प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ ७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्- कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः । निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ ८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा- -वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् । स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९॥

अखर्व(अगर्व)सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस- -द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् । धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः । तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ १२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् । विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३॥

निलिम्पनाथनागरीकदम्बमौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भरक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशं
परश्रियः परं पदंतदङ्गजत्विषां चयः ॥ १४॥

प्रचण्डवाडवानलप्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनीजनावहूतजल्पना । विमुक्तवामलोचनाविवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषणा जगज्जयाय जायताम् ॥ १५॥

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ १६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ १७॥

॥ इति श्रीरावणविरचितं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Friday, 27 July 2018

shivamahimna stotra


श्रीशिवमहिम्नस्तोत्र ( पुष्पदन्त ) 
shivamahimna stotra ( puShpadanta )

श्रीशिवमहिम्नस्तोत्र ( पुष्पदन्त ) ॥ ॐ नमः शिवाय ॥ ॥ अथ श्री शिवमहिम्नस्तोत्रम् ॥ महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः । अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः ॥ १॥ अतीतः पंथानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि । स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः ॥ २॥ मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम् । मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता ॥ ३॥
तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत् त्रयीवस्तु व्यस्तं तिस्रुषु गुणभिन्नासु तनुषु । अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जडधियः ॥ ४॥ किमीहः किंकायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च । अतर्क्यैश्वर्ये त्वय्यनवसर दुःस्थो हतधियः कुतर्कोऽयं कांश्चित् मुखरयति मोहाय जगतः ॥ ५॥
अजन्मानो लोकाः किमवयववन्तोऽपि जगतां अधिष्ठातारं किं भवविधिरनादृत्य भवति । अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने कः परिकरो यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरत इमे ॥ ६॥
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च । रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥ ७॥
महोक्षः खट्वाङ्गं परशुरजिनं भस्म फणिनः कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम् । सुरास्तां तामृद्धिं दधति तु भवद्भूप्रणिहितां न हि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति ॥ ८॥
ध्रुवं कश्चित् सर्वं सकलमपरस्त्वध्रुवमिदं परो ध्रौव्याऽध्रौव्ये जगति गदति व्यस्तविषये । समस्तेऽप्येतस्मिन् पुरमथन तैर्विस्मित इव स्तुवन् जिह्रेमि त्वां न खलु ननु धृष्टा मुखरता ॥ ९॥ तवैश्वर्यं यत्नाद् यदुपरि विरिञ्चिर्हरिरधः परिच्छेतुं यातावनिलमनलस्कन्धवपुषः । ततो भक्तिश्रद्धा-भरगुरु-गृणद्भ्यां गिरिश यत् स्वयं तस्थे ताभ्यां तव किमनुवृत्तिर्न फलति ॥ १०॥
अयत्नादासाद्य त्रिभुवनमवैरव्यतिकरं दशास्यो यद्बाहूनभृत-रणकण्डू-परवशान् । शिरःपद्मश्रेणी-रचितचरणाम्भोरुह-बलेः स्थिरायास्त्वद्भक्तेस्त्रिपुरहर विस्फूर्जितमिदम् ॥ ११॥
अमुष्य त्वत्सेवा-समधिगतसारं भुजवनं बलात् कैलासेऽपि त्वदधिवसतौ विक्रमयतः । अलभ्यापातालेऽप्यलसचलितांगुष्ठशिरसि प्रतिष्ठा त्वय्यासीद् ध्रुवमुपचितो मुह्यति खलः ॥ १२॥ यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद परमोच्चैरपि सतीं अधश्चक्रे बाणः परिजनविधेयत्रिभुवनः । न तच्चित्रं तस्मिन् वरिवसितरि त्वच्चरणयोः न कस्याप्युन्नत्यै भवति शिरसस्त्वय्यवनतिः ॥ १३॥
अकाण्ड-ब्रह्माण्ड-क्षयचकित-देवासुरकृपा विधेयस्याऽऽसीद् यस्त्रिनयन विषं संहृतवतः । स कल्माषः कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो विकारोऽपि श्लाघ्यो भुवन-भय- भङ्ग- व्यसनिनः ॥ १४॥
असिद्धार्था नैव क्वचिदपि सदेवासुरनरे निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखाः । स पश्यन्नीश त्वामितरसुरसाधारणमभूत् स्मरः स्मर्तव्यात्मा न हि वशिषु पथ्यः परिभवः ॥ १५॥ मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदं पदं विष्णोर्भ्राम्यद् भुज-परिघ-रुग्ण-ग्रह- गणम् । मुहुर्द्यौर्दौस्थ्यं यात्यनिभृत-जटा-ताडित-तटा जगद्रक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता ॥ १६॥ वियद्व्यापी तारा-गण-गुणित-फेनोद्गम-रुचिः प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदृष्टः शिरसि ते । जगद्द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमिति अनेनैवोन्नेयं धृतमहिम दिव्यं तव वपुः ॥ १७॥ रथः क्षोणी यन्ता शतधृतिरगेन्द्रो धनुरथो रथाङ्गे चन्द्रार्कौ रथ-चरण-पाणिः शर इति । दिधक्षोस्ते कोऽयं त्रिपुरतृणमाडम्बर विधिः विधेयैः क्रीडन्त्यो न खलु परतन्त्राः प्रभुधियः ॥ १८॥ हरिस्ते साहस्रं कमल बलिमाधाय पदयोः यदेकोने तस्मिन् निजमुदहरन्नेत्रकमलम् । गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषः त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम् ॥ १९॥
क्रतौ सुप्ते जाग्रत् त्वमसि फलयोगे क्रतुमतां क्व कर्म प्रध्वस्तं फलति पुरुषाराधनमृते । अतस्त्वां सम्प्रेक्ष्य क्रतुषु फलदान-प्रतिभुवं श्रुतौ श्रद्धां बध्वा दृढपरिकरः कर्मसु जनः ॥ २०॥
क्रियादक्षो दक्षः क्रतुपतिरधीशस्तनुभृतां ऋषीणामार्त्विज्यं शरणद सदस्याः सुर-गणाः । क्रतुभ्रंशस्त्वत्तः क्रतुफल-विधान-व्यसनिनः ध्रुवं कर्तुं श्रद्धा विधुरमभिचाराय हि मखाः ॥ २१॥ प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं गतं रोहिद् भूतां रिरमयिषुमृष्यस्य वपुषा । धनुष्पाणेर्यातं दिवमपि सपत्राकृतममुं त्रसन्तं तेऽद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभसः ॥ २२॥ स्वलावण्याशंसा धृतधनुषमह्नाय तृणवत् पुरः प्लुष्टं दृष्ट्वा पुरमथन पुष्पायुधमपि । यदि स्त्रैणं देवी यमनिरत-देहार्ध-घटनात् अवैति त्वामद्धा बत वरद मुग्धा युवतयः ॥ २३॥
श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचराः चिता-भस्मालेपः स्रगपि नृकरोटी-परिकरः । अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं तथापि स्मर्तॄणां वरद परमं मङ्गलमसि ॥ २४॥
मनः प्रत्यक् चित्ते सविधमविधायात्त-मरुतः प्रहृष्यद्रोमाणः प्रमद-सलिलोत्सङ्गति-दृशः । यदालोक्याह्लादं ह्रद इव निमज्यामृतमये दधत्यन्तस्तत्त्वं किमपि यमिनस्तत् किल भवान् ॥ २५॥
त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवहः त्वमापस्त्वं व्योम त्वमु धरणिरात्मा त्वमिति च । परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रति गिरं न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत् त्वं न भवसि ॥ २६॥
त्रयीं तिस्रो वृत्तीस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरान् अकाराद्यैर्वर्णैस्त्रिभिरभिदधत् तीर्णविकृति । तुरीयं ते धाम ध्वनिभिरवरुन्धानमणुभिः समस्त-व्यस्तं त्वां शरणद गृणात्योमिति पदम् ॥ २७॥ भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान् तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम् । अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते ॥ २८॥
नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमः नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः । नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमः नमः सर्वस्मै ते तदिदमतिसर्वाय च नमः ॥ २९॥
बहुल-रजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नमः प्रबल-तमसे तत् संहारे हराय नमो नमः । जन-सुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नमः प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नमः ॥ ३०॥
कृश-परिणति-चेतः क्लेशवश्यं क्व चेदं क्व च तव गुण-सीमोल्लङ्घिनी शश्वदृद्धिः । इति चकितममन्दीकृत्य मां भक्तिराधाद् वरद चरणयोस्ते वाक्य-पुष्पोपहारम् ॥ ३१॥
असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी । लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥ ३२॥
असुर-सुर-मुनीन्द्रैरर्चितस्येन्दु-मौलेः ग्रथित-गुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य । सकल-गण-वरिष्ठः पुष्पदन्ताभिधानः रुचिरमलघुवृत्तैः स्तोत्रमेतच्चकार ॥ ३३॥
अहरहरनवद्यं धूर्जटेः स्तोत्रमेतत् पठति परमभक्त्या शुद्ध-चित्तः पुमान् यः । स भवति शिवलोके रुद्रतुल्यस्तथाऽत्र प्रचुरतर-धनायुः पुत्रवान् कीर्तिमांश्च ॥ ३४॥
महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः । अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम् ॥ ३५॥
दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं यागादिकाः क्रियाः । महिम्नस्तव पाठस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥ ३६॥
कुसुमदशन-नामा सर्व-गन्धर्व-राजः शशिधरवर-मौलेर्देवदेवस्य दासः । स खलु निज-महिम्नो भ्रष्ट एवास्य रोषात् स्तवनमिदमकार्षीद् दिव्य-दिव्यं महिम्नः ॥ ३७॥
सुरगुरुमभिपूज्य स्वर्ग-मोक्षैक-हेतुं पठति यदि मनुष्यः प्राञ्जलिर्नान्य-चेताः । व्रजति शिव-समीपं किन्नरैः स्तूयमानः स्तवनमिदममोघं पुष्पदन्तप्रणीतम् ॥ ३८॥
आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्व-भाषितम् । अनौपम्यं मनोहारि सर्वमीश्वरवर्णनम् ॥ ३९॥ इत्येषा वाङ्मयी पूजा श्रीमच्छङ्कर-पादयोः । अर्पिता तेन देवेशः प्रीयतां मे सदाशिवः ॥ ४०॥ तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर । यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नमः ॥ ४१॥ एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः । सर्वपाप-विनिर्मुक्तः शिव लोके महीयते ॥ ४२॥ श्री पुष्पदन्त-मुख-पङ्कज-निर्गतेन स्तोत्रेण किल्बिष-हरेण हर-प्रियेण । कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेशः ॥ ४३॥
॥ इति श्री पुष्पदन्त विरचितं शिवमहिम्नः स्तोत्रं समाप्तम् ॥

Saturday, 31 March 2018

Loan and nominal gain

Political agenda on religious base are very poor decisions for present all top leaders...
Better do best work for civilian people...By Making better policies for good government's administration...
If private company getting benefits by country, why not country getting from world
https://t.co/lPoMtrtasa

Do not estimate person or country on base of LOAN .... means how much distributed by same but assume or presume same on his gain as how much will received by same factor...

India announced Lines of Credit of US$10 billion for development projects and a grant assistance of $600 million at the last India-Africa summit in 2015 to spread over 5 years. A number of development partnership projects are ongoing or completed in various African countries either as Grant-in Aid projects or under concessional loans ....

Recently indian pm given loan to rawanda country too....

India commits $340 million soft loans to Nepal

India extends $4.5 billion loan to Bangladesh.....

May the reason belongs to civilian or political or economic purpose....

But

japan given loan to india for bullet train...

FIXED....

still so many hurdles are there and even more neither land cleared nor energy level for same project....

Who will receive gain by what efforts or who will responsible for not done clear job....

Same country's people will ask question on one day and if there are no answer ....who will suffer.... is big question...

If in private company's employees need appraisal for increment then why not government employees need work summary report for country's civilian people...

Each VOTE has value.....
then think for cast factor....

The current Repo Rate as fixed by theRBI is 6.25% p.a. As per the bi-monthly monetary policy statement, RBI has increased the repo rate (key lendingrate) by 25 basis points. ... The reverse repo rate has also increased to 6% and the Marginal Standing FacilityRate(MSF) and the Bank Rate has increased to 6.50%.

Even since long fixed deposit persentage rato rate also down....think wise for indian people....

That is why political personnel needs target oriented work in his term....isn't so?????

Jigar Mehta / Jaigishya